Sunday, February 27, 2011

सुरेश भट - लाभले आम्हांस भाग्य बोलतो मराठी


   लाभले आम्हांस भाग्य बोलतो मराठी
   जाहलो खरेच धन्य ऎकतो मराठी
   धर्म,पंथ,जात एक जाणतो मराठी
   एवढ्या जगात माय मानतो मराठी
            आमुच्या मनामनांत दंगते मराठी
          आमुच्या उराउरांत स्पंदते मराठी
          आमुच्या नसानसांत नाचते मराठी
          आमुच्या रगारगांत रंगते मराठी
   आमुच्या पिलापिलांत जन्मते मराठी
   आमुच्या लहानग्यांत रांगते मराठी
   आमुच्या मुलामुलींत खेळते मराठी
   आमुच्या घराघरांत वाढते मराठी
           आमुच्या कुलाकुलांत नांदते मराठी
           येथल्या फुलाफुलांत हासते मराठी
           येथल्या दिशादिशांत दाटते मराठी
           येथल्या नगानगांत गर्जते मराठी
     येथल्या दरीदरींत हिंडते मराठी
     येथल्या वनावनांत गुंजते मराठी
     येथल्या तरूलतांत साजते मराठी
     येथल्या  कळीकळींत लाजते मराठी
          येथल्या नभामधून वर्षते मराठी
          येथल्या पिकामधून डोलते मराठी
          येथल्या नद्यांमधून वाहते मराठी
          येथल्या चराचरांत राहते मराठी
     पाहुणे जरी असंख्य पोसते मराठी
      आपुल्या घरात हाल सोसते मराठी
      हे असे कितीक खेळ पाहते मराठी
      शेवटी मदांध तख्त फोडते मराठी

2 comments:

  1. पाहुणे जरी असंख्य पोसते मराठी
    आपुल्या घरात हाल सोसते मराठी
    हे असे कितिक ’खेळ’ पाहते मराठी
    शेवटी मदांध तख्त फोडते मराठी

    असं आहे ना शेवटचं कडवं ?

    (कौशल इनामदारांनी संगीत देताना हे गाळलं आहे.)

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  2. शेवटचे कडवे घेतले आहे.
    कवितांच्या गावात याची ध्वनिचित्रफित पाहू शकाल

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