फिर कही कोई फुल खिला, चाहत ना कहो उसको
फिर कही कोई दिप जला, मंझिल ना कहो उसको
मन का समंदर प्यासा रहा,
क्यु किसिसे मांगे दुवा
लहरोका चला जो मेला
तुफा ना कहो उसको
फिर कही कोई फुल खिला, चाहत ना कहो उसको
फिर कही कोई दिप जला, मंझिल ना कहो उसको
देखे सब वो सपने
खुद ही सजाये जो हमने
दिल उनसे बहेल जाये तो
राहत ना कहो उसको
फिर कही कोई फुल खिला, चाहत ना कहो उसको
फिर कही कोई दिप जला, मंझिल ना कहो उसको
- गुलझार (चित्रपट - अनुभव)
मला माहिती नाही की याला कविता म्हणावं की नाही.
अभीतक तो कविता है..
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